वितस्ता विमर्श
हिंदी भाषा, साहित्य, संस्कृति व समीक्षा को समर्पित
वितस्ता विमर्श का कलेवर
हे कविवर !
-मुकेश कुमार ऋषि वर्मा हे कविवर! रुको न तुम, झुको न तुम करो नित सत साहित्य सृजन न हो निराश, सदा रहो शारदे तप लीन। तुम्हें करना है चमत्कार दिखाना है समाज को आईना ताकि बदल जाये जग की दिशा- दशा तुम्हें लड़ना है अन्याय, अधर्म से मिटाना है शोषण।
प्रतिध्वनि
-विनय जैन ‘आनन्द’ पहाड़ जो कि बने हैं पत्थर, मिट्टी से हमारे बोले शब्द लौटा देते हैं हमें ही प्रतिध्वनि के रूप में। घर की दीवारें जो बनी होती हैं ईंट, पत्थरों से ईंट! जो कि मूलतः मिट्टी ही है वो भी लौटा देती है हमारे बोले शब्द प्रतिध्वनि के
कहानी जो अधूरी रह गयी
-पुष्पेश कुमार पुष्प खुशबू अपने नाम के अनुरूप अपनी खूबसूरती बिखेर रही थी। हर कोई उसकी खूबसूरती का दीवाना था। जिस ओर निकल जाती लोग आहें भरने लगते। हर कोई उसे बेबस निगाहों से देखता रह जाता। लेकिन लोगों की समझ में यह बात नहीं आ रही थी
कश्मीर की औरत
-आशमा कौल कश्मीर में सिर्फ सुंदरता और आतंक नहीं कश्मीर में रहती हैं लड़कियाँ और औरतें भी वे लड़कियाँ जिनकी नीली आँखों में बसा था खुशनुमा सपनों का संसार। जो मन ही मन गुनगुनाती थी प्यार के गीत महकती वादियों में मतवाली धुनों पर। कश्मीरी औरतें जो पका रही हैं
वितस्ता विमर्श
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