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कश्मीर की औरत

-आशमा कौल

कश्मीर में सिर्फ

सुंदरता और आतंक नहीं

कश्मीर में रहती हैं

लड़कियाँ और औरतें भी

वे लड़कियाँ जिनकी नीली आँखों में बसा था

खुशनुमा सपनों का संसार।

जो मन ही मन

गुनगुनाती थी प्यार के गीत

महकती वादियों में

मतवाली धुनों पर।

कश्मीरी औरतें जो

पका रही हैं हरा साग खुद ज़र्द होकर

लेकिन उनका दुःख

कोई जान नहीं पाता

उनकी खूबसूरती लगने नहीं देती

पता उनके दर्द का

आँसुओं को छिपाती

अपने फेरन के बाज़ू से

और लगी रहती सुबह शाम

अपने काम में।

कश्मीर की औरतें, औरतें हैं

हिन्दू-मुस्लिम नहीं

उनका दु:ख बड़ा है

गीता के श्लोकों और कुरान

की आयतों से

वे एक-दूसरे का दर्द समझती हैं

पंडित औरत ने देखा है

सीने पर गोली खाते

अपने निर्दोष बच्चे को

मुस्लिम औरत भी पीटती है छाती अपनी

जब जेहादी ले जाते हैं जबरन

उसके मासूम बच्चे को।

कश्मीर में सिर्फ सुंदरता और आतंक नहीं

कश्मीर में रहती हैं लड़कियाँ और औरतें भी।

औरतें बँटना नहीं चाहती

धर्म के खेमों में

पर बाँट दिया जाता है उन्हें

उन्हें आती है याद

पुरानी बातें मुलाकातें

जब वे मिल कर गाती थीं, करती थीं  रोफ़

खिलखिलाती थी

शिवरात्रि और ईद के त्योहारों पर।

केसर वाले कहवे की खुशबू

जब फ़ैल जाती थी

उनके आँगनों में

सुहाग गीत गाए जाते थे

और मनाई जाती थी

मिलकर जश्न से

हर खुशी परिवार की

बादाम वाली फिरनी के संग।

अब पंडित औरतें

सुखा कर आँसूओं को

पहुँच गई हैं

जम्मू के जगति कैम्प में

अपने परिवारों के संग और

पीछे रह गई हैं

उनकी मुस्लिम सहेलियाँ

जिनके साथ बांटा था उन्होंने

हर सुख-दुःख जीवन का

उनका यह दर्द

कुछ आतंकी पुरुष नहीं समझ पाते

वे तो अपने मज़हब के

नशे में चूर

नहीं समझना चाहते

अपनी औरतों का दर्द

नहीं देखना चाहते उनकी आँखों के आँसू

वे सिर्फ ज़िंदाबाद के नारे

लगाना जानते हैं

वे भूल चुके हैं

मीर और ललदैद के वाख

वे नहीं जानते बच्चे के बिछुड़ने पर

माँ की नाभि और स्तनों में

कैसा दर्द होता है

वे उन औरतों का दर्द भी नहीं

समझना चाहते

जिनके सुहाग को लील गया है

यह जिहादी आतंकवाद।

कश्मीर में सिर्फ सुंदरता और आतंक नहीं

कश्मीर में रहती हैं लड़कियाँ और औरतें भी।

जगति कैम्प में रहती

पंडित औरतों के आँसू और

कश्मीर में मुस्लिम औरतों के आँसू का

रूप रंग एक-सा है

वे दूर ज़रूर हैं लेकिन

दर्द के धागे से जुड़ी हुई हैं

औरतें एक-दूसरे का

दुःख समझती हैं क्योंकि

जुड़े रहते हैं उनके मन के तार

आपस में।

कश्मीरी लड़की की

नीली आँखों में

अब नहीं आते सुन्दर सपने

सहम जाती है वह सपनों में भी

गोलियों की आवाज़ सुन और उसकी माँ

छिपा लेती है उसको

अपने दुपट्टे में और फुसफुसाती है

उसके कान में कि

वह उसकी और कश्मीर की खूबसूरती पर

लगने नहीं देगी इस आतंक का ग्रहण…

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6 thoughts on “कश्मीर की औरत”

  1. True depection of agony of kashmiri women forced to leave her nest and languish in hostile environment …going thru the poem is as teal as reliving the pain and anguish …well done keep on writing and soon y will touch the pinnacle

  2. Naresh Shandilya

    बहुत ही मार्मिक और उत्कृष्ट कविता है।
    बधाई आशमा जी 👍😊💐

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