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हे कविवर !

-मुकेश कुमार ऋषि वर्मा       

हे कविवर!

रुको न तुम, झुको न तुम

करो नित सत साहित्य सृजन

न हो निराश,

सदा रहो शारदे तप लीन।

तुम्हें करना है चमत्कार

दिखाना है समाज को आईना

ताकि बदल जाये जग की दिशा- दशा

तुम्हें लड़ना है अन्याय, अधर्म से

मिटाना है शोषण।

हे कविवर!

काम तुम्हारा नहीं व्यर्थ का

सदियों से हर युग में,

तुमने समाज का उत्थान किया

मानव को मानवता का ज्ञान दिया।

गढ़ शब्दों से कविता को जन्म दिया

जन-जन की पीड़ा को मरहम दिया

स्वयं अभावों में रहकर

संसार को दौलतमंद किया

परोपकार भरा कार्य किया।

हे कविवर!

बेशक न करे कोई गुणगान

तुम थे महान, तुम हो महान, तुम रहोगे महान…।

-मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

ग्राम रिहावली, डाकघर तारौली गुर्जर,

फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश 283111 9627912535

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