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कहानी जो अधूरी रह गयी

-पुष्पेश कुमार पुष्प

                                                      

खुशबू अपने नाम के अनुरूप अपनी खूबसूरती बिखेर रही थी। हर कोई उसकी खूबसूरती का दीवाना था। जिस ओर निकल जाती लोग आहें भरने लगते। हर कोई उसे बेबस निगाहों से देखता रह जाता। लेकिन लोगों की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि उसने अभी तक शादी क्यों नहीं की? क्या यूँ  ही अमीरों की बाँहों में झूलते हुए अपनी ज़िंदगी गुज़ार देगी? कभी इसकी तो कभी उसकी बाँहों में। वह आज तक किसी को अपना जीवन साथी नहीं बना सकी। उसे सही रास्ता दिखाये भी कौन? इस दुनिया में अब उसका है ही कौन? जबसे इस मोहल्ले में किराये के मकान में रहने आयी है, तब से मोहल्ले के लोगों को इस बात का आश्चर्य अवश्य होता है कि उसका अपना कोई रिश्तेदार आज तक उससे मिलने नहीं आया। न ही वह मोहल्ले वालों से कोई संबंध रखती है और न किसी को अपने घर पर आने  देती है। सुबह-सुबह उसके घर के आगे चमचमाती कार आकार रुक जाती है और वह सौंदर्य की देवी की तरह सज-संवर कर अपनी खूबसूरती की खुशबू बिखेरती गाड़ी में बैठ जाती। मोहल्ले की औरतें उसके बारे में तरह-तरह की चर्चाएँ करती, तो पुरुष उन्हें लालायित निगाहों से देखते रह जाते। उसकी ज़िंदगी की पहेली लोगों की समझ से परे थी। मोहल्ले के लोग खुशबू की ज़िंदगी के रहस्य को जानने को उत्सुक थे, लेकिन वह उनके लिए अबूझ पहेली थी।

खुशबू के घर में काम करने वाली राधा भी खुशबू कि उलझी ज़िंदगी को सुलझाने का प्रयास कर रही थी, लेकिन वह जितना खुशबू की ज़िंदगी की पहेली को सुलझाने का प्रयास करती, वह उतना ही उलझती जा रही थी।

एक दिन मोहल्ले की औरतों ने राधा को अपनी महिला मंडली में बिठा लिया और उसका चाय, समोसे से स्वागत करते हुए बोलीं- “अच्छा राधा! तू  उस खुशबू के घर में काम करती है, तो यह बता कि उसने अभी तक शादी क्यों नहीं की? क्या उसके परिवार में  कोई है भी या नहीं? आखिर वह करती क्या है? बन-संवरकर किसके पास जाती है और रात में कब वापस आती है?”

एक साथ इतने सारे प्रश्न सुनकर राधा भौचक्की रह गयी और बोली- “मेम साहब! मैं तो खुद आश्चर्यचकित हूँ कि खुशबू मेम साहब ने अभी तक शादी क्यों नहीं की? आज तक किसी नाते-रिश्तेदार को भी आते नहीं देखा और न किसी बाहरी आदमी को अपने घर पर आने देती हैं।हाँ, मैं इतना जरुर जानती हूँ कि उनकी दोस्ती बड़े-बड़े लोगों से है। वह काम क्या करती हैं ? यह मैं नहीं जानती।हाँ, एक दिन उनको मोबाइल पर बात करते जरुर सुना था। वह किसी से प्यार जरुर करती थी, लेकिन उससे शादी करने से इंकार कर दी । सुबह जाती हैं और देर रात घर लौटती हैं। आते ही बिस्तर पर गिर जाती हैं। मानो सारा शरीर टूट रहा हो। अमीर लोगों से दोस्ती होने के बावजूद घर में विलासता की कोई वस्तु नहीं है। वह बाहर से फिट जरुर दिखती हैं, लेकिन भीतर से एकदम खोखली। इन सबके पीछे आखिर क्या रहस्य है, मैं नहीं जानती?”

तभी मिसेज कपूर बोली- “अरे दोस्ती नहीं! इसकी जैसी लड़कियाँ अमीरों की बाँहों में झूला करती हैं। आज इनके साथ, तो कल उनके साथ। जब ज़िंदगी का आनंद ऐसे ही मिल रहा है, तो शादी क्यों करेगी? किसी से शादी कर लेगी, तो नये-नये मर्द का स्वाद कैसे मिलेगा?”

उनकी बातें सुनकर राधा गुस्से से काँप गयी और बोली- “चाहे जो भी हो। बिना जाने-समझे किसी पर आरोप लगाना ठीक बात नहीं। आखिर इसके पीछे जरुर उनकी कोई मजबूरी होगी।”

“मिसेज कपूर ठीक कह रही हैं। वह एकदम गिरी हुई औरत है। वरना इतनी उम्र होने के बावजूद अभी तक शादी क्यों नहीं की? आखिर इतना सज-संवर कर किसे दिखाती है? ये औरत ज़रूर अपने तन का सौदा करती होगी।” मिसेज साधना मुस्कुराते हुए बोली।

“आप लोगों को जो सोचना हो, सोचते रहो। मैं चली।” इतना कहकर राधा महिला मंडली से उठकर चली गयी।

एक दिन खुशबू राधा से बोली- “राधा! आज तुम्हें कहीं जाना है?”

“कहाँ जाना है, मेम साहब?” राधा बोली।

“ये लो गुलाब के फूलों का गुलदस्ता और इसे माणिक के हाथों में दे देना। कहना मैंने भेजा है।” और उसे माणिक के घर का पता दे दिया।

राधा गुलदस्ता लेकर माणिक के घर गयी। क्या आलीशान बंगला था? गेट के बाहर माणिक के गार्ड ने राधा को भीतर जाने से रोक दिया और कहा- “कहाँ जा रही हो बिना पूछे?”

“खुशबू मेम साहब ने माणिक साहब के लिए फूलों का गुलदस्ता भेजा है। उनके हाथ में ही देने को कहा है।” राधा बोली।

खुशबू का नाम सुनते ही गार्ड ने राधा को भीतर जाने की अनुमति दे दी।

बाग में बैठा माणिक बोला-“किससे मिलना है?”

“जी! खुशबू मेम साहब ने माणिक साहब के लिए फूलों का गुलदस्ता भेजा है।” राधा सकुचाते हुए बोली।

“क्या खुशबू ने फूलों का गुलदस्ता भेजा है? ला इधर ला।” और माणिक ने राधा के हाथ से फूलों का गुलदस्ता ले लिया और फूलों की सुगंध से अपने आपको सराबोर कर लिया ।

राधा फूलों का गुलदस्ता उसे देकर वहाँ से निकल गयी और सोचने लगी- “कहाँ ये पचास साल का अधेड़! कहाँ खुशबू मेम साहब! दोनों के उम्र में कितना फर्क है। कैसे मेम साहब इस अधेड़ से शादी कर सकती हैं? फिर मेम साहब इससे प्यार कैसे करने लगी? दोनों की जोड़ी तो जमती ही नहीं। पैसों की खातिर आज का इंसान कुछ भी कर सकता है। मुझे इन बातों से क्या लेना-देना? मुझे तो बस मेम साहब के काम करने से मतलब है।”

एक दिन राधा बाज़ार से सामान लेकर आ रही थी। रास्ते में ही माणिक का घर पड़ता था। उसके घर के पास लोगों की भीड़ लगी थी। वह सोचने लगी- “माणिक के घर के आगे लोगों की भीड़ क्यों लगी है?” यह जानने के लिए वह भीड़ में शामिल हो गयी।

लोग एक-दूसरे से कह रहे थे- “न कोई बीमारी और न किसी बात की तकलीफ। फिर अचानक माणिक की मौत कैसे हो गयी? आखिर इसकी मौत के पीछे क्या वजह हो सकती है?”

दूसरा व्यक्ति बोला- “इसकी मौत तो सचमुच रहस्यमय तरीके से हुई है। मौत का कारण किसी की समझ में नहीं आ रहा। खुद इसके परिवार वाले भी इसकी मौत का कारण समझ नहीं पा रहे। यह माणिक कोई अच्छा इंसान थोड़े ही था। एकदम गिरा हुआ इंसान था। एक नंबर का ऐय्याश था। बेबस और लाचार लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने में माहिर था। अच्छा हुआ इंसान की शक्ल में एक भेड़िए का अंत हो गया।”

राधा सारी बातें जानकार भी कुछ समझ नहीं पायी और आकर मेम साहब को माणिक की मौत की सूचना दी। माणिक की मौत की खबर सुनकर खुशबू मेम साहब के चेहरे पर शिकन तक नहीं आयी। मानो माणिक की मौत का उन्हें कोई गम न हो। वह पहले की तरह अपने साज-श्रृंगार में लगी थी।

खुशबू मेम साहब की बाँहों में हर कोई समा जाना चाहता था। उनकी खूबसूरती ही ऐसी थी कि उनके दीदार के लिए लोग अपनी पलकें बिछाए रहते थे और माणिक की मौत के बाद उनकी खूबसूरती के मोहजाल में फंसा, शहर का दबंग व अपार दौलत का मालिक रविकांत। उसने खुशबू की खूबसूरती पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।

खुशबू मेम साहब ने राधा को फिर एक गुलाब के फूलों का गुलदस्ता रविकांत के घर पर पहुँचाने  को कहा। राधा फूलों का गुलदस्ता रविकांत को दे आयी। पर यह क्या? चार दिन बाद ही सारे शहर में यह खबर फैल गयी कि रविकांत की रहस्यमय तरीके से मौत हो गयी।

खुशबू मेम साहब रविकांत की मौत पर शोक मनाने के बजाय प्रसन्न दिख रही थी और अपने साज-श्रृंगार में व्यस्त थी। रविकांत की मृत्यु का मेम साहब को कोई गम नहीं था।

खुशबू की खूबसूरती पर मर-मिटने वालों की कोई कमी नहीं थी। खूशबू की ज़िंदगी गुलज़ार करने शहर के नामी रईस सुधीर बाबू आ गये। सुधीर बाबू खुशबू से बेइंताह प्यार करते थे। वे अपने बीबी-बच्चों को छोड़कर खुशबू के रूप और यौवन पर आसक्त हो गये। सुधीर बाबू भी कोई सुलझे विचारों के कहाँ थे? न जाने कितनों को सताया था। गरीब और लाचार लोगों का खून ही चूसा था। उनकी बहू-बेटियों की इज़्ज़त पर भी हाथ डाला था। गरीब की मजबूरी का फायदा उठाने में माहिर थे। सुधीर बाबू अब खुशबू की खूबसूरती का लुत्फ उठा रहे थे।

खुशबू मेम साहब ने फिर एक दिन राधा के हाथों में फूलों को गुलदस्ता थमाया और बोली- “राधा! इसे सुधीर बाबू को दे देना। सुधीर बाबू के अलावा किसी और के हाथ में यह फूलों का गुलदस्ता नहीं जाना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना।”

फूलों का गुलदस्ता राधा सुधीर बाबू को दे आयी। घोर आश्चर्य चार दिन बाद ही सुधीर बाबू की रहस्यमय तरीके से मौत की खबर सारे शहर में फैल गयी। खुशबू मेम साहब सुधीर बाबू की मौत की खबर सुनकर ज़रा भी असहज नहीं हुईं, बल्कि ड्रेसिंग टेबुल पर बैठी मंद-मंद मुस्कुराते हुए अपने साज-सज्जा में लगी हुई थी।

राधा यह समझ नहीं पा रही थी कि वह जिन-जिन लोगों को फूलों का गुलदस्ता दे रही  थी, उसकी तीन-चार दिन में रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गयी। फिर मेम साहब को इन लोगों की मौत पर कभी शोक मनाते हुए भी नहीं देखा। कभी इन लोगों की मौत की खबर सुनकर उनका चेहरा उदास नहीं हुआ, बल्कि उनका चेहरा खिल उठा। आखिर इन सबके पीछे क्या रहस्य छिपा है? आखिर उस गुलदस्ते में ऐसा क्या है, जो व्यक्ति के पास जाते ही उसे मौत के मुँह में पहुँचा देता है? आखिर मेम साहब अपने प्रेमी के साथ ऐसा क्यों करती हैं? उसे प्यार के जाल में फंसाकर मौत के मुँह में क्यों ढकेल देती हैं? इन सबके पीछे आखिर कौन-सा कारण है? कहीं इन सबके पीछे खुशबू मेम साहब का कोई दर्द तो नहीं छिपा है, जो मेम साहब को यह सब करने पर मजबूर कर देता हो! खुशबू मेम साहब अपने प्रेमी की मौत पर मातम मनाने के बजाय भीतर ही भीतर प्रसन्नता से क्यों खिल उठती हैं? मानो उनके भीतर कोई ज़ख्म हो, जो इन लोगों की मौत से उनके हरे घाव को भर देता हो? न जाने कितने प्रश्न राधा के मन-मस्तिष्क में कौंध रहे थे। वह इस रहस्य पर से पर्दा उठाना चाहती थी, लेकिन इस रहस्य पर से पर्दा उठाने का जितना प्रयास करती। उतना ही यह रहस्य गहराता जा रहा था। राधा खुशबू मेम साहब से उन प्रश्नों का जवाब जानना चाहती थी, लेकिन यह सब पूछने की उसकी हिम्मत नहीं होती। वह बस बेबस निगाहों से मेम साहब को देखती रह जाती।

कुछ समय बाद खुशबू मेम साहब की ज़िंदगी में शहर का सबसे बड़ा ठेकेदार और नेता राम सिंह आया। राम सिंह एक नंबर का मक्कार और जालसाज आदमी था। दो नंबर की कमाई से उसने अकूत संपत्ति बना रखी थी। गरीबों के खून-पसीने की कमाई को लूटकर अपने आपको बहुत बड़ा धर्मात्मा समझता था। गरीब व बेबस इंसान को डरा-धमाका कर उनकी ज़मीन व मकान हथिया लेना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। गरीब और लाचार की बहू-बेटियों को पैसे के बल पर या ज़बरदस्ती उनकी इज़्ज़त के साथ खेलता था। अब वह खुशबू मेम साहब की खुशबू लूटने उनकी ज़िंदगी में आया था। वह उनकी खूबसूरती का दीवाना था और खुशबू मेम साहब की खूबसूरती पर उसने अपना सारा धन न्यौछावर कर दिया था।

खुशबू मेम साहब और राम सिंह का प्यार परवान चढ़ने लगा। काफी समय हो गया, लेकिन खुशबू मेम साहब ने राधा से नहीं कहा कि जाओ राम सिंह को गुलाब के फूलों का गुलदस्ता दे आओ।

एक दिन खुशबू मेम साहब ने अपने हाथ में गुलदस्ता लिए राधा को बुलाया। राधा समझ गयी कि गुलदस्ता पहुँचाने का समय आ गया है।

राधा जान-बूझकर अनजान बनते हुए बोली- “इस गुलदस्ते को किसे देना है।”

“आज गुलदस्ता लेकर तुम नहीं। मैं स्वयं जाऊँगी।” खुशबू मेम साहब मुस्कुराकर बोली।

राधा के हाथों में नोटों की गड्डी थमाते हुए बोली- “राधा! आज के बाद शायद मैं तुमसे नहीं मिल पाऊँगी। इन रुपयों से कोई अच्छा-सा धंधा कर लेना, ताकि तुम्हें फिर किसी के घर में काम नहीं करना पड़े।”

नोटों की गड्डी थामे राधा खुशबू मेम साहब को एकटक निहारते हुए बोली- “क्यों मेम साहब? आप कहीं और जा रही हैं।”

खुशबू मेम साहब मुस्कुराते हुए बोली- “राधा! तुम्हारे मन में मेरी ज़िंदगी से जुड़े कई सवाल उमड़-घुमड़ रहे होंगे। आज तुम्हारे हर सवाल का जबाव मिल जाएगा। एक अनसुलझे रहस्य पर से पर्दा उठ जाएगा। तुम यही न सोचती हो कि मैं अभी तक शादी कर अपना घर क्यों बसा नहीं पायी? मैं अपने तन का सौदा क्यों करती हूँ? मैं किसी से सच्चे मन से प्रेम नहीं करती, बल्कि प्यार का ढोंग करती हूँ। फिर यह फूलों का गुलदस्ता जिसके पास गया। वह चंद दिनों में ही मौत के मुँह में समा गया। आज इन सब सवालों का जबाव मैं तुम्हें दूँगी। मैं अपनी ज़िंदगी के दर्द भरे सच को बताऊँगी।”

राधा अजीब निगाहों से मेम साहब को देखने लगी।

खुशबू मेम साहब बोली- “राधा! मैं एक गरीब घर में पैदा हुई थी। गरीबी के कारण मैं पढ़ाई भी न कर सकी। गरीब के घर में खूबसूरत बेटी का होना, उस परिवार के लिए नासूर बन जाता है। मेरे साथ भी यही हुआ।  मैं बहुत खूबसूरत थी। मेरी खूबसूरती पर हर कोई फिदा था। मेरी खूबसूरती कुछ लोगों की निगाहों में चढ़ गयी। वे लोग मुझे किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहते थे। उन लोगों ने मेरे माँ-बाप से मेरे तन का सौदा करना चाहा, लेकिन मेरे माँ-बाप गरीब होने के बावजूद अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करना चाहते थे। गरीब आदमी का भी अपना ईमान-धर्म होता है। मेरी खूबसूरती मेरे माँ-बाप के लिए नासूर बन गयी। इस नासूर का एक ही इलाज था वह था मेरी शादी। गरीब के घर में जन्म लेनी वाली बेटी की शादी अमीर घर में कैसे होती? अमीर लोग तो मेरे तन का सुख भोगना चाहते थे। इसलिए मेरे माँ-बाप ने मेरी शादी एक गरीब के बेटे से तय कर दी। बारात घर पर आ चुकी थी। तभी इंसान की शक्ल में उन भेड़ियों ने जबरदस्ती मंडप पर से मुझे उठा लिया। सबके सामने मेरी इज़्ज़त को तार-तार करने लगे। मेरे होने वाले पति ने इसका विरोध किया, लेकिन उन नर-पिशाचों ने उसकी निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी। लोग तमाशबीन बने रहे। किसी ने इसका विरोध नहीं किया। सब लोगों के सामने मेरी इज़्ज़त को नीलाम कर दिया उन भेड़ियों ने। मेरे माँ-बाप इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाए क्योंकि वे किसी को अपना मुँह दिखाने लायक नहीं रहे। उसी समय उन दोनों ने आत्महत्या कर ली। मैं रोती-गिड़गिड़ाती अपनी इज़्ज़त की भीख     माँगती रही, लेकिन उन हवस के भेड़ियों को मुझपर ज़रा भी तरस नहीं आया। सरे आम मेरी इज़्ज़त को नीलाम कर दिया। मैं मर जाना चाहती थी, तभी मेरी अंतरात्मा ने मुझे धिक्कारा-“यह क्या करने जा रही हो? जब तुम मर जाओगी, तो इनकी गुनाहों की सज़ा  कौन देगा? इन लोगों का मनोबल बढ़ता ही जाएगा। तुम्हें इन पापियों को इनके किए  की सज़ा देनी ही होगी? तुम अपनी खूबसूरती की बदौलत इनके किए की सज़ा दे सकती हो।”

उसी दिन मैंने निश्चय कर लिया कि इन पापियों को उनके किए की सज़ा देकर ही रहूँगी और सही समय की प्रतीक्षा करने लगी। मेरे रूप और यौवन में निखार आता गया। इतने वर्षों में वे उस घटना को भूल गए व मेरा चेहरा भी पहचान न सके। मुझे वैसे इंसानों से घृणा हो गयी, जो औरत को भोग की वस्तु समझते थे। वैसे इंसानों का काम-तमाम करने लगी। मैं गरीबों के लूटे खून-पसीने की कमाई को उनसे लूटने लगी। उन पैसों से गरीब और लाचार की बेटियों की शादी, शिक्षा से वंचित बेटियों, गरीबी से लाचार बीमारों की चिकित्सा तथा हर तरह से लाचार लोगों की सेवा में लगा दी। मैं स्वयं उन पैसों का उपयोग नहीं करती। इन फूलों के गुलदस्ते में ऐसा ज़हर है, जो इंसान एक बार सूँघ ले, तो तीन-चार दिन में उसकी मौत निश्चित है। अपनी खूबसूरती और इस गुलदस्ते को अपना हथियार बनाया। उन पापियों को उनके किए की सज़ा दे दी। अब एक पापी राम सिंह बचा है। उसे मौत के घाट उतारते ही मेरा बदला पूरा हो जाएगा, लेकिन वह बड़ा शातिर खिलाड़ी है। वह इतनी आसानी से मौत के मुँह में नहीं जाएगा। लेकिन आज उसका भी खेल खत्म करके ही रहूँगी। शायद इस लड़ाई में मैं भी मारी जाऊँ? मैं शायद उसके घर से वापस नहीं लौट सकूँ। तुम मेरा इंतज़ार मत करना। मुझे भूल जाना और तुम अपनी गृहस्थी बसा लेना।” और मेम साहब की आँखों से आँसू बहने लगे। वे अपने आँसू पोछते हुए गुलदस्ता लिए बाहर निकल गयी।

राधा अपलक नेत्रों से मेम साहब को जाते हुए देखती रह गयी। मेम साहब की दर्द भरी  दास्तान सुनकर राधा की आँखें डबडबा आईं।

काफी दिन बीत गये। खुशबू मेम साहब सचमुच वापस लौटकर नहीं आई। राधा ने भी अपनी गृहस्थी बसा ली। उसे आज मेम साहब की याद आ रही थी। वह यह सोचने पर विवश हो गयी कि दूसरों की ज़िंदगी संवारने वाली मेम साहब की ज़िंदगी की कहानी अधूरी रह गयी। लोगों की नज़रों में वह तन बेचने वाली ज़रूर थी, लेकिन इसके पीछे ज़िंदगी का वह भयवह सच छिपा था, जिसे समाज ने कभी जानने की कोशिश नहीं की। मेम साहब तो महान थी, लेकिन अपनी महानता किसी के सामने प्रदर्शित नहीं करती थी। उनके अवगुण से लोग परिचित ज़रूर हो गये, किंतु उनके सदगुण से अपरिचित रह गये। तन बेचकर ही सही दीन-दुखियों की सेवा में निरंतर लगी रही। अपने जीवन के लिए कुछ नहीं किया, सदैव दूसरों के लिए जीती रहीं। क्या मेम साहब ने राम सिंह को मारकर अपना बदला पूरा कर लिया होगा? या फिर मेम साहब उसका शिकार हो गयी होगी। नहीं! नहीं! मेम साहब उसे मारे बिना नहीं मर सकती। ज़रूर उसे मारकर ही मरी होगी।

और राधा की आँखों से आँसू की बूंदें टपकने लगीं। मेम साहब तो अब नहीं थी, लेकिन उनकी स्मृतियाँ राधा की आँखों में अवश्य तैर रही थी।

                                                      -पुष्पेश कुमार पुष्प

                                                  विनीता भवन, निकट- बैंक ऑफ इंडिया,

                                                  काजीचक, सवेरा सिनेमा चौक,                                                  

बाढ़- 803213 (बिहार)

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