हे कविवर !
-मुकेश कुमार ऋषि वर्मा हे कविवर! रुको न तुम, झुको न तुम करो नित सत साहित्य सृजन न हो निराश, सदा रहो शारदे तप लीन। तुम्हें करना है चमत्कार दिखाना है समाज को आईना ताकि बदल जाये जग की दिशा- दशा तुम्हें लड़ना है अन्याय, अधर्म से मिटाना है शोषण। हे कविवर! काम तुम्हारा नहीं […]